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Saturday 24 September 2011

बिम्ब

रेखांकन: ललित मिश्रा 
हर पल खुशियाँ बिखराने को 
दिल की आभा काफी है 
अमृत मुखरित बिम्ब है उसमें
वहाँ पवित्रता की वाणी है...

तेज प्रताप रश्मि जहां है
मानवता का संचार वहाँ है
अखिल विश्व  की संजीवनी 
स्वार्थों का संहार वहाँ  है...

आधार शीला बस एक यही है 
यही है ज्ञान चक्षु मेरी 
मेरी दिव्य पताका यही है 
यही ज़िंदगी मेरी है...

भूत भविष्य यही है 
नित धर्म कर्म यह मेरी है 
उसकी हर क्रंदन में मैं हूँ 
मेरी छोटी सी दुनिया यही है. 

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3 comments:

  1. बहुत सुन्दर भावों को संजो कर लिखी रचना ... मेरे ब्लॉग पर आने का आभार


    कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  2. यही है ज्ञान चक्षु मेरी
    मेरी दिव्य पताका यही है
    यही ज़िंदगी मेरी है...
    बढ़िया अभिव्यक्ति.... सुन्दर भाव....
    सादर...

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  3. आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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